क्या हम, वास्तव में परवाह करते हैं, इसलिए हमेशा अपनी राय या अपने फैसले, दूसरों पर थोपते हैं। एक समय की बात है। एक बाप- बेटा जंगल से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि, कुछ लड़के, कीचड़ में कुछ, ढूंढ रहे हैं। जब वो पास जाकर उन लड़कों से पूछते हैं- तो लड़के बोलते हैं कि वहां देखो, एक सोने का फल है। उस आदमी ने देखा, तो वहां सच में सोने का फल दिख रहा था। उसे लगा कि अगर यह फल हमें मिल जाए, तो हमारे पास बहुत पैसा होगा। उसने अपने बेटे को, इसे लाने को कहा। बेटा मना कर रहा था, लेकिन इतने में ही, उसने, अपने बेटे को कीचड़ में धकेल दिया।
लड़का जैसे ही आगे बढ़ा, वो ढूबने लगता है। हाथ-पैर मार रहा है, बोल रहा है कि वो डूब रहा है, लेकिन वो आदमी समझ नहीं पाया। थोड़ी ही देर में लड़का डूब गया। असल में वो, दलदल था। तब उस आदमी को पछतावा होता है और वो रोने लगता है। तभी एक संत वहां से गुजरते हैं। आदमी ने उसे कहा, मैंने तो अपने बेटे की भलाई के लिए उसे भेजा था, लेकिन अब वो नहीं रहा। संत ने कहा- जो फल तुम्हें पानी में दिख रहा है, वो उसकी परछाई है। असली फल, ऊपर उस, पेड़ पर है। उसे जबरदस्ती वहां भेजने की बजाय, अगर तुम अपने बेटे से पूछते कि वो क्या करना चाहता है, तो शायद आज वो भी जिंदा होता और यह सोने का फल भी तुम्हें मिल जाता। इस कहानी में हमने देख लिया है कि दूसरों पर अपनी राय थोपने की, भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।